पता नही किसे याद होगा, बहुत लोग तो पक्का भूल गए होंगे। लेकिन तुम्हे तो याद होगा ही, रवीश कुमार। ४ नवंबर की सुबह, हाथ में AK-47 पकड़े हुए तकरीबन साठ पुलिसवालों के साथ अर्णब गोस्वामी के घर पर सुबह की पहली चाय के वक्त एक अनचाहा महमान आया। उसका नाम था सचिन वाजे।
उस समय अर्णब और उसकी टीम छोड़कर शायद ही कोई जानता था कि सचिन वाजे का उद्देश्य असल में अर्णब की गिरफ्तारी के बजाय उसे एनकाउंटर में उड़ा देना भी हो सकता है। लेकिन अर्णब का परिवार तो समझ सकता था। बातें कही हफ्तों से उस दिशा में जा रही थी। जबसे अर्णब के चैनल का रिपोर्टर कर्जत के उस कथित फार्महाउस के पास पाया गया, राज्य की सरकार जैसे अर्णब को खतरे की तरह देखने लगी हो। कोई कहेगा की इतना कुछ नही होता। लेकिन उस समय का माहौल बिल्कुल तनाव और कुछ बड़े तूफान के आहट और संकेतों से भरा हुआ था।
लेकिन आहट कितनी भी महसूस करे कोई, तूफान आता है तो सारी तैयारी धरी की धरी रह जाती है। उस सुबह भी ऐसा ही हुआ। पिछले सात आठ दिनों से राज्य सरकार की ओर से अर्णब पर कुछ बोला नहीं गया था। अर्णब भी अपने शो में जितना हो सके तमीज और आदर दिखाकर, जताकर पेश आ रहा था। सात आठ दिन गए ऐसेही तो लगने लगा था की ये एक नया सामान्यत्व है, इस संबंधों का। जैसे सरकार अर्णब और उसके साथियों को थाने बुलाकर जांच करेगी। लेकिन उस लकीर को पार नहीं करेगी। और अर्णब भी अपने शो में, सारे नेताओं के नाम आदर से लेगा, या वैसा दिखाएगा। शायद ये नया सामान्य समीकरण बन रहा हो, इस संघर्ष में। ऐसी संभावना तोड़ के रख दी ४ नवंबर की सुबह की घटना ने।
जिस तरह बंद दरवाजा पीटा जा रहा था। जिस स्वर में आवाजे आ रही थी, औरतों को तुरंत अंदेशा हो जाता है की मामला कहां तक जाएगा। अर्णब की पत्नी ने तुरंत फोन निकाला, बेटे ने भी अपना फोन निकाला और लाइव स्ट्रीमिंग शुरू की। इसी एक बात की वजह से अर्णब की जान पर बन आई थी, वो बला टल गई।
आज मनसुख हीरेन की बॉडी, उनके बंधे हाथ, मुंह में ठूसा रुमाल न दिखाई देता, तो कोई सचिन वाजे को जिम्मेदार या दोषी न ठहराता शायद। उस सुबह लाइव स्ट्रीमिंग से पुलिस पर जिम्मेदारी पड़ी की अदालत में ही ले जाना होगा अर्णब को। उस में भी अर्णब की एक टीम साए की तरह अर्णब के पीछे थी। की कोई सोचे भी अर्णब के एनकाउंटर की बात, तुरंत लाइव टेलीकास्ट करे देश के सामने। ये मीडिया के कैमरे की सुरक्षा अगर मनसुख हीरेन को मिलती तो कोई उसके हाथ बांधकर, मुंह में रुमाल ठुसकर समंदर में फेंक सकता था? लेकिन क्यों की कोई रिपोर्टिंग नही हो रही थी, तो शायद ऐसा हो पाया, एनआईए इसकी पुष्टि करेगा ही।
लेकिन रवीश कुमार को तो याद होगा। ४ नवंबर की शाम या ५ नवंबर की सुबह रवीश ने अर्णब के नाम कुछ लिखा था। याद है किसी को? उस खुले खत का आशय कुछ ऐसा था की पत्रकार होने के बावजूद रवीश क्यों मजबूर है की अर्णब लिए आवाज न उठाए। कैसे अर्णब करता है वो असल मायने में पत्रकारिता है ही नही। और अंत में जो लिखा था, उस आधार पर मैं पूरे यकीन से कह सकता हूं की रवीश में क्षमता है की वो किसी निहत्थे व्यक्ति को, बिल्कुल शांति और संतुलन में रहते कत्ल कर सकते है।
अब इतनी बड़ी बात कही है तो मुझे बताना पड़ेगा की क्यों ऐसा बोल रहा हूं। सचिन वाजे था एनकाउंटर स्पेशलिस्ट। ६५ के आसपास एनकाउंटर कर चुका था। और उसे २००४ में निलंबित किया ही इसलिए था की उसकी गिरफ्त के एक टेररिस्ट की मौत हुई थी। अब ऐसा आदमी जिसकी गिरफ्त में कोई पहले ही मरा हो, वो अगर आपको गिरफ्तार करने आए, साथ ६० पुलिसवाले AK 47 लेकर खड़े हो और जरूरी कागज़ भी बिना दिखाएं वो आपको उठाने लगे, तो इसका मतलब कितना भयंकर है, क्या रवीश को नहीं पता?
और ये सारे तथ्य, उस अफसर और अर्णब को जिस तरह से उठाया गया, वो सारी डिटेल्स ४ नवंबर की सुबह ही दुनियाभर पता चल चुकी थी। जाहिर है रवीश भी समझ चुका था की अर्णब को उठाया है एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिसवाले ने तो उसका मतलब क्या है। लेकिन रवीश लिखता क्या है?
रवीश ने लिखा की किस तरह अर्णब एजेंडा चलाता है, दूसरों को बोलने नही देता। कितना घटिया पत्रकार है अर्णब। इतना ही नहीं, रवीश कुमार महोदय आगे लिखते है, की गिरफ्तारी की वीडियो में अर्णब का जो घर दिखा, वो घर बड़ा सुंदर बनाया है। रवीश का खुदका घर तो इतना सुंदर नही, लेकिन ये कोई जलन नही है। सचमुच सुंदर घर बनाया है अर्णब ने। लेकिन इतने सुंदर घर में रहने के बावजूद अर्णब के मन में कितना जहर भरा हुआ है।
भाई रवीश जी, आप पत्रकार है। आपको तो पहले पूछना चाहिए की पुलिस कागज़ बिना दिखाएं किसी को कैसे उठा ले जाती है। क्यों साठ लोग AK 47 लेकर खड़े थे। अर्णब से जुड़ा वो मामला तो हाईकोर्ट के संज्ञान से बंद हुआ था, तो उसे दो साल बाद खोला जाए तो किसी को गिरफ्तार क्यों करे? अब दो साल बाद कौन सबूत मिटाने जाएगा?
आपको तो बताना चाहिए की वो पुलिसवाले कोई सीएए के खिलाफ प्रोटेस्ट में थोड़े ही बैठे थे की वो भी कागज़ नही दिखाएंगे?
लेकिन जब अर्णब पर सचमे जान का खतरा हो सकता था, तब आपको उसके घर का सौंदर्य और उसके मन में होनेवाला जहर इन्ही बातों को लिखना ठीक लगा।
रवीश कुमार और उनके प्रशंसक कहते है की रवीश मोदी से तीखे और सीधे सवाल पूछते है। भाई महाराष्ट्र भी तो भारत का ही हिस्सा है। तो महाराष्ट्र की सरकार से भी पूछ लेते चार सवाल रवीश। लेकिन नही। आज आधा मार्च चला गया। लेकिन रवीश ने अबतक महाराष्ट्र सरकार से कोई सवाल नहीं किया। न ही राजस्थान या छत्तीसगढ़ की सरकारों से।
जिस पुलिस अफसर ने अर्णब को घर से उठाया था, वो आज एनआईए के हिरासत में है। उसने कुछ तो किया है न, कुछ कुबूल भी किया है। तो रवीश ने उसपर स्टोरी की? या फिर केवल मोदी को बुरा बताने की कोशिश ही करेंगे रवीश?
रवीश कुमार महोदय, जिस गाड़ी में वो अफसर अर्णव के घर आया था, उसी गाड़ी ने आज उस अफसर को एनआईए की हिरासत तक पहुंचा दिया है। क्यों न आप उस गाड़ी पर ही स्टोरी करे?
२००४ में, गिरफ्त में होते कैदी की मौत के मामले में इन अफसर सचिन वाजे को निलंबित किया था। आज फिर एक शक्स उनपर भरोसा करनेवाला मरा है। और इन घटनाओं के बीच अर्णब भी कुछ समय के लिए इन्ही अफसर की गिरफ्त में था। उस वक्त तो आपने अर्णब के घर और मन के मैल पर कलम साफ कर दी अपनी। आज नही करेंगे?
क्राइम ब्रांच को जो अफसर लीड करता था, उसे एनआईए ने गाड़ी में जिलेटिन रखने के आरोप में पकड़ा है। अर्णब के मन का मैल पूरा धूल गया क्या, की रवीश कुमार कोई लेख ही नही लिख रहे?
शायद अभी भी रवीश CAA के खिलाफ हुए प्रोटेस्ट की यादों से उभरे नही है। इसलिए शायद उन्होंने महाराष्ट्र की इन घटनाओं पर लिखा तो काफी है अपनी डायरी में। लेकिन याद रहे, वो कागज नही दिखाएंगे।